मंगलवार, 2 मई 2017

आगाज़-एक शुरुआत

                         वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समस्प्रभः  
   निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु र्वदा ।।"
"घुमक्कङ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है " -राहुल सांकृत्याय
"सैर कर दुनिया की  गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ 
जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ ? " -मौलवी इस्माइल मेरठी
जून 2015, मनिकरण के भगवान रामचन्द्र के मन्दिर से
"घुमक्कङी का जो अनुभव है वहाँ समय की उपस्थिति शून्य हो जाती है अर्थात् विलीन हो जाती है। तब उस अनुभव में न 
कोई अतीत होता है, कोई भविष्य होता है। तब जो होता है वो होता है- शुद्ध वर्तमान...केवल शुद्ध वर्तमान.!" -मनीष पाल
        घुमक्कङ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है। घुमक्कङ से बढकर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नही हो सकता।
दुनिया दुख में हो चाहे सुख में, यदि सहारा पाती है तो घुमक्कङी की ओर से। घुमक्कङ मुक्त आकाश के पक्षियों की भाँति
पृथिवी पर सदा विचरण करता हैजाङों में इस जगह तो गर्मियों में वहाँ से कोसों दूर
          पुस्तकें भी घुमक्कङी का का कुछ-कुछ रस प्रदान करती हैं, लेकिन जिस तरह आप चित्र देखकर हिमालय के देवदार के
गहन वनों और श्वेत हिम-मुकुटित शिखरों के सौन्दर्यपुष्पों की सुगन्ध, पक्षियों के मधुर स्वर, नदियों की कलकलाहट का 
अनुभव नही कर सकते । उसी तरह यात्रा-कथाओं से आपको उस बूँद से भेंट नही हो सकती जो एक घुमक्कङ को प्राप्त होती है
         घुमक्कङ होना आदमी के लिए परम सौभाग्य की बात है घुमक्कङ धर्म से बढकर दुनिया में कोई धर्म नही है 
क्योंकि यह पंथ अपने अनुयायी को मरने के बाद किसी काल्पनिक स्वर्ग का प्रलोभन नही देता। घुमक्कङी वही कर सकता है
जो निश्चिन्त है। साधनों से  सम्पन्न होकर आदमी घुमक्कङ नही बन सकता
          "क्या खूब सौदा नकद है इस हाथ ले उस हाथ दे। घुमक्कङी के लिए चिन्ताहीन होना आवश्यक है
और चिन्ताहीन होने के लिए घुमक्कङी भी आवश्यक है "  घुमक्कङी से बढकर सुख कहाँ मिल सकता है
आखिर चिन्ताहीनता तो सुख का सबसे स्पष्ट रूप है हमने कभी सोचा भी है कि घुमक्कङी में हमें अपार ऊर्जा भी मिलती है 
अंतत: ये ऊर्जा प्रेम में परिवर्तित और रूपान्तरित होती है
प्रेम क्या है- परमात्मा को पाने का मार्ग  
परमात्मा क्या है- प्रेम की अनन्त बूँदों का जोङ
प्रेम का मतलब ही यह है कि हम अपने से ज्यादा मूल्यवान किसी और को मान रहे हैं जिसने कभी किसी को प्रेम 
नही किया हो, उसके जीवन में परमात्मा की कोई शुरुआत नही हो सकती; क्योंकि प्रेम के शुरुआती क्षण में पहली दफा 
कोई व्यक्ति परमात्मा का हो जाता है  इसको ऐसे समझा जा सकता है कि जिसने कभी पानी की कोई बूँद नही देखी हो
वह कहता है कि मुझे सागर चाहिेए । 
सागर क्या है- पानी की अनन्त बूँदों का जोङ तो जी अगर आप घुमक्कङी करते हैं तो आप प्रेम कर सकते हैं और अगर 
आप प्रेम करते हैं तो आप परमात्मा को पा सकते हैं इसीलिये तो मेरे ब्लाॅग का उपशीर्षक है- 'घुमक्कङी से अध्यात्म की ओर'
दिसम्बर 2016, गेंहूँ की पत्ती पर ओस की बूँदें
          प्रेम के अतिरिक्त जगत के किसी व्यक्ति के जीवन में आत्मत्रप्ति नही है, प्रेम के अतिरिक्त कोई व्यक्ति 
कभी स्वस्थ नही हो सकता। प्रेम जीवन में हो तो मस्तिष्क रुग्णचिन्तमय और तनावग्रस्त होगा । 
प्रेम जो है, वह व्यक्ति की त्रप्ति का चरमबिन्दु है अगर आप प्रेम करना जानते हैं तो उसी प्रेम के कारण आप उस 
जगह को पा लेते है, जैसे- घुमक्कङी  प्रेम । और अगर यही प्रेम आत्मा का परमात्मा के साथ हो जाए तो एक दिन 
आप परमपिता परमात्मा को भी प्राप्त कर लें
          हमने बचपन में कहीं पढा था- "समाज के बाहर रहने वाला इन्सान या तो जानवर होता है या देवता " तो जी 
जब हम घुमने जाते हैं तो समाज के बाहर ही तो होते हैं, अब चूँकि हम घुमक्कङ हैं तो प्रेम करना भी जानते हैं तो 
इस कारण से हम बन जाते हैं देवता और आपको पता है घुमक्कङी के श्रेष्ठतम अनुभव में अहंकार बिल्कुल शून्य हो जाता है
वहाँ सिर्फ आपको पहाङों की विराटता का एहसास होता है, नदियों की निरन्तरता का अनुभव होता है और 
आकाश की अनन्तता का अनुभव होता है तब आपका 'मैं' और समय बिल्कुल मिट जाता है  जैसे ही अहंकार मिटता है,  
आत्मा की झलक उपलब्ध होती है और जैसे ही समय मिटता है परमात्मा की झलक उपलब्ध होता है... तो बन गये आप देवता
          घुमक्कङ क्या है- जो सत-रज-तम से मार्ग पर विचरण करता हो, जिसके लिए कोई नियम हों और कोई रोक  
और सच कहूँ तो घुमक्कङी में कोई नियम नहीं होता और जो नियम से चले वह घुमक्कङ नहीं होता । 
जैसा की महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी कहते हैं
"दुनिया में मनुष्य जन्म एक बार होता है, और जवानी भी केवल एक बार आती है
 साहसी  मनस्वी तरुण-तरुणियों को इस अवसर से हाथ नही धोना चाहिये
कमर बाँध लो भावी घुमक्कङो
संसार आपके स्वागत के लिए बेकरार है "
       घुमक्कङी वही कर सकता है जिसमें भारी मात्रा में हर तरह का साहस है- माँ के आँशूओं की परवाह और पिता के 
भय और उदास होने की घुमक्कङी में कष्ट भी होते हैं , लेकिन उन्हें उसी तरह समझिये जैसे भोजन में मिर्च मिर्च में 
यदि कङवाहट हो तो, क्या कोई मिर्च-प्रेमी उसमें हाथ भी लगायेगा? वस्तुत: घुमक्कङी में कभी-कभी होने वाले  
कङवे अनुभव उसके रस को और बढा देते हैं- उसी तरह जौसे काली प्रष्ठभूमि में चित्र अधिक खिल उठता है
          यदि दर्शन करने का शौ है तो अनुकूल दृष्टि उत्पन्न कीजिये । 
"दुनिया में मनुष्य बनकर आये हो तो मनुष्यों को इन्सान बनने के इस अवसर को नहीं गंवाना चाहिये, उन्हें प्रेम करना चाहिये । 
तैयार हो जाओ इन्सानोंपरमात्मा आपके सत्कार के लिए तत्पर हैं "
" प्रभु ने दिया अनन्त वरदान तुम्हें, उपभोग करो प्रतिक्षण नव-नव  
क्या कभी तुम्हें इस त्रिभुवन में, यदि बने रह सको तुम मानव ।। " -भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
अब आप सभों से एक निवेदन है- ये बसुन्धरा बहुत ही रमणीय है, इसकी रमणीयता में एक बार खोकर तो देखिये आप  
स्वार्थ विहीन उन्नति का अनुभव कर पाएँगे एक बार पागल पथिक बनकर तो देखिये आपके आनन्द की खोज पूरी हो जायेगी । 
कभी सूर्योदय से पहले जागकर तो देखिये आप आप अनन्त ऊर्जा से भर जायेंगे । और यही ऊर्जा आपको  
प्रेम के मार्ग से परमात्मा तक ले कर जायेगी और बाकि आपको पता है "घुमक्कङ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है "
तो जी ये है मेरा अध्यात्मिक यात्रा ब्लाॅग- "अद्वैत्य घुमक्कङ" 'घुमक्कङी से अध्यात्म की ओर'